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गुरुवार, 14 सितंबर 2017

उत्तराखंड के एक गाँव बरसुडी की यात्रा (दिल्ली से बरसुडी)

जैसे जैसे बडा होता गया घुमने की ललक बढती रही। बचपन से हरिद्वार जाता रहा। कभी फैमली के संग तो कभी गांव से कांवरियों को छोडने वाली बस में। फिर ब्लॉग लेखन में आया। यह मेरा अपना शौक था एक जुनून था। हमेशा मन में पहाड ही बसे रहे इसलिए इन पहाडो पर ही घुमता रहा। मन में काफी दिन से मंशा थी की किसी पहाडी गांव पर जाकर कुछ दिन व्यतीत करू। वहा का रहन सहन, खाना पीना देखा जाए। क्योकी अब तक पहाड पर जब भी गया होटल में ही रूका। इसलिए पहाड और वहां के स्थानीय लोगो को व उनका रहन सहन को जान ना सका। एक बार किसी का ब्लॉग पढा जिसमें वह अपने एक दोस्त के गांव गया उसका गांव पहाड पर था। तब से मन में था की कुछ दिन शांति से कही किसी पहाड़ के गांव में रहने जाया जाए।

इसी बीच फेसबुक के माध्यम से बीनू कुकरेती उर्फ रमता जोगी से मुलाकात हुई। यह दिल्ली में रहते है वैसे मूलभूत निवासी उत्तराखंड के है। इनका गांव का नाम बरसुडी है जो की पौड़ी गढ़वाल जिला में आता है। द्वारीखाल से तकरीबन सात किलोमीटर पैदल चलने के बाद इनके गांव पहुंचा जाता है। बरसुडी जाने का पहला अवसर मिला जब हम कुछ घुमक्कड़ दोस्तो ने 2016 में इनके गांव में बच्चो के लिए एजूकेशन कैम्प लगाया था। लेकिन तब मेरा बरसुडी जाना नही हो पाया था। लेकिन इस साल 2017में भी पिछले साल की तरह हम दोस्तो ने बरसुडी में स्कूली बच्चो के लिए एजूकेशन कैम्प व गांव वालो के लिए मेडिकल कैम्प लगाने का कार्यक्रम बनाया। मेरे लिए यह दूसरा अवसर था बरसुडी जाने का जिसे मैं पिछले साल की तरह खोना नही चाहता था।
बरसुडी गांव

बरसुडी गांव एक दुर्गम जगह पर बसा हुआ है। गांव वालो को अपनी प्राथमिक जरूरतो के लिए भी बहुत कष्ट ऊठाने पडते है। अगर गांव में कोई बीमार भी हो जाए तो उसे द्वारीखाल तक या तो पैदल या फिर किसी का सहारा लेकर आना ही पडेगा। देश को आजाद हुए 70 वर्ष हो चुके है लेकिन इस पहाडी गांव तक सड़क नही है। और आप जानते ही है की जहां सड़क नही होती, वहां हर चीज का अभाव रहता है। उत्तराखंड राज्य उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना लेकिन फिर भी यहां तक सड़क ना बन सकी। इसलिए गांव के हर घर में युवा अच्छी शिक्षा व रोजगार पाने के लिए गांव छोड शहर में बसता जा रहा है आज इस पलायन की वजह से गांव में अधिकत्तर घर बंद पडे है या फिर बुजुर्ग लोग ही रह रहे है। खेत खलियान जो की कभी हरे भरे रहते थे फसलो से, अब बंजर हुए दिखते है। गांव का हर शख्स पलायन की इस पीडा से त्रस्त है। लेकिन कुछ लोग आज भी है जो अपने गांव में रहते हुए, शहर में नौकरी करते है और खाने मात्र के लिए खेती करते है। इन लोगो से ही यह गांव व इस जैसे अन्य पहाडी गांव चल रहे है। खैर आगे बढ़ते है...

बात यह है की कैम्प की तैयारियों के लिए मुझे भी कार्य सौपा गया। और बीनू जी ने गांव चलने का आग्रह भी किया। बीनू के गांव की खूबसूरती के बारे में अपने दोस्तो से बहुत सुना था व उनके द्वारा बनाई गई फोटो विडियो भी देखी थी। जो की मुझे बरसुडी जाने को कह रहे थे। अब की बार कुछ जाने में काम की अडचने भी आई और एक बार तो मेरा जाना लगभग कैंसिल हो गया। लेकिन कुदरत को यह मंजूर नही था मेरा काम बनता गया और मैं 12 अगस्त को अपने घर से बरसुडी के निकल चला। जयपूर के एक मित्र देवेंद्र कोठारी जी को फोन लगाया। की क्या वह मेरे साथ चलेंगे लेकिन उन्होने बताया की वह अपने एक मित्र के साथ बरसुडी के लिए निकल गए है। मैं अपनी हाल में ही ली गई नई कार को लेकर जा रहा था। यह कार आटोमेटिक गियर प्रणाली पर चलती है इसलिए इसका परीक्षण भी पहाडी रास्तो पर देखना था। फिर मैने अपने एक मित्र को साथ में ले लिया और लगभग हम सुबह के 10:30 पर बरसुडी के लिए निकल चले।

हम गाजियाबाद से होते हुए मेरठ पहुंचे। मेरठ से बिजनौर वाला रूट पकड़ लिया। बिजनौर पार करने के बाद नजीबाबाद फ्लाई ओवर के नीचे मुझे मेरे एक और मित्र मिले जो की अम्बाला से आ रहे थे। इनका नाम है नरेश सहगल जी। यह अपनी बाईक से ही आ रहे थे साथ में इनके एक मित्र भी थे। इन दोनो से मैं पहले भी मिल चुका हूं,  इनका स्वभाग बडा ही मिलनसार है। इनका एक बैग मेने अपनी कार में रख लिया और चल पडे आगे की तरफ। सुबह नाश्ता करके चले थे लेकिन अब दोपहर के लगभग दो बज रहे थे इसलिए एक होटल पर रूक कर हमने खाना खाया। नजीबाबाद से कोटद्वार लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है। हमें ज्यादा देरी नही लगी वहां पहुंचने में। कोटद्वार शहर उत्तराखंड में आता है। यहां पर हनुमानजी का सिद्धबली नामक मन्दिर एक टीले पर बना है। खोह नदी के किनारे किनारे आगे चल पडे। इसी साल मार्च महिने मैं इधर आया था तब पानी कम था नदी में लेकिन अब बारिश की वजह से नदी में बहुत पानी था।सड़क की हालत कई जगह से बहुत खराब थी क्योकी कुछ दिन पहले इस क्षेत्र में बादल फट गया था जिस कारण नीचले हिस्से में पानी भर गया और सडक़ टूट गई। बहुत सी जगह लैंडस्लाईड भी हो गई थी। लेकिन अब रास्ता साफ हो चुका है। हमे आगे बढने में कोई पेशानी नही हुई। कोटद्वार से आगे दुग्गडा नामक जगह पडती है। यहां पर हमने द्वारीखाल के लिए रास्ता पूछा तो एक व्यक्ति ने बताया की बांये तरफ जाता रास्ता भी उधर चला जाता है लेकिन इधर लोगो की आवाजाही कम है इसलिए आप मैन सड़क से ही गुमखाल होते हुए जाए। हम आगे बढ़ चले कुछ दूर चलने पर एक जगह दो रास्ते हो जाते है। दाहिने तरफ का रास्ता लैंसडौन चला जाता है और बांयी तरफ वाला गुमखाल के लिए। हम बांयी तरफ चल पडे अब चढाई शुरू हो गई थी। मेरी गाडी पहाडो पर चलने में मेरी तरफ से पास हो चुकी थी। पहाडो की बल खाती सड़क बडी सुंदर दिख रही थी। चारो तरफ हरियाली छायी हुई थी।कुछ देर बाद हम गुमखाल पहुंचे।यहां पर कुछ दुकाने बनी थी और एक मन्दिर भी था। गुमखाल से एक रास्ता पौडी को चला जाता है तो दूसरा रास्ता द्वारीखाल होते हुए नीलकंठ और फिर रीशीकेश की तरफ चला जाता है। हम बांयी तरफ जाते रोड पर चल पडे। गुमखाल से द्वारीखाल तकरीबन 13 किलोमीटर की दूरी पर है। हम लगभग शाम के पांच बजे द्वारीखाल पहुंचे।
बिजनोर से पहले गंगा नदी पर बना बैराज 

नजीबाबाद में मेरे साथ नरेश और उनके मित्र

गुमखाल , हमे बाएँ तरफ जाना है। 

अभी सीधे चलना है। 

पहुँच गये द्वारीखाल 

जगह देखकर रोड के किनारे ही गाडी लगा दी।द्वारीखाल की ऊंचाई करीब 1630 मीटर है जबकी बरसुडी करीब 1320 मीटर पर बसा है। यहां से आगे बरसुडी के लिए पैदल ही जाना होगा। वैसे गाडी थोडी आगे चली जाती है, लेकिन अभी कुछ दिन पहले ही बारिश की वजह से लैंडस्लाईड हो गई थी। जिस कारण यह कच्ची रोड बंद हो गई। हम दोनो नें अपने अपने बैग कंधो पर टांग लिए। मैने एक स्थानीय व्यक्ति से बरसुडी तक जाने का रास्ता पूछा। उन्होने रास्ता दिखलाते हुए बताया की आप को इधर से जाना है। तभी एक व्यक्ति हमारे पास आए,  उन्होने मुझसे पूछा की आप बरसुडी जा रहे है कैम्प के लिए। मैने उनको बताया की मैं बीनू कुकरेती का दोस्त हूं और बरसुडी जा रहा हूं। उन्होंने बताया की वह बरसुडी के ही रहने वाले है और गाव के रिश्ते में बीनू के भाई लगते है। वह द्वारीखाल में पोस्टमैन की जॉब करते है। वह भी छुट्टी होने पर बरसुडी ही जा रहे है। आप नए हो कही भटक ना जाओ इसलिए साथ चलने को कह रहा हूं। मैं उनसे मिलकर बडा खुश हुआ क्योकी वह हमारी मदद करने के लिए ही तो आए थे। उन्होने अपना नाम रामानंद कुकरेती बताया। उनकी धर्मपत्नी गांव बरसुडी की प्रधान भी है। हम चल पडे लेकिन मेरे पास नरेश सहगल जी का बैग था वह अभी तक आए नही थे। मैने वहीं पर बने एक कुकरेती होटल वाले से कहा की दो लोग मोटरसाइकिल पर आएगे आप उनसे कह देना की आपका बैग आपके दोस्त ले गए है। तभी मेरी नजर सड़क की तरफ गई तो देखा की नरेश सहगल जी आ रहे है।

नरेश जी हमारे पास आकर मिले फिर हमने वही एक दुकान पर चाय पी। चाय पीने के बाद नरेश जी अपना बैग लेकर बरसुडी के लिए निकल गए। गांव तक बाईक चली जाती है, मगर आराम से नहीं क्योंकी गांव तक रास्ता बहुत ऊबड़-खाबड़ वाला है। खैर हम तीनो चल पडे साथ में एक व्यक्ति भी साथ चल रहे थे जो की भलगांव के रहने वाले थे। भलगांव भी बरसुडी के पास ही है लेकिन इस गांव तक तो रास्ता बरसुडी से भी कठीन है जो मुझे रामानंद जी ने बताया। हम एक पंगडन्डी पर चल रहे थे, नीचे देखने पर कच्ची रोड दिख रही थी और वह लैंडस्लाईड भी जिसकी वजह से यह रोड बंद थी। रोड के नीचे गहरी खाई भी दिख रही थी। पूरा रास्ता हल्की उतराई वाला ही था इसलिए थकावट व सांस फूलने जैसे लक्षण शरीर पर हावी नही हो रहे थे। गांव की सडक़ पर बात हो रही थी क्योकी ग्राम प्रधान का कार्य रामानंद जी ही देखते है। उन्होने बताया की यह सड़क प्रधान मंत्री सड़क योजना के तहत बननी है। कुछ महीने पहले सड़क पर चिन्ह भी लगाए गए लेकिन वास्तविक सड़क कब बनेगी यह पता नही। हम तो उम्मीद ही कर सकते है की सड़क जल्दी बन जाए। अब हम पंगडन्डी छोड थोडी सी बडी कच्ची सड़क पर आ गए। वैसे इसको पंगडन्डी ही कहना उचित होगा। तभी मैं एक दृश्य को देखकर ठहर गया। एक महिला अपने 11 वर्षीय बच्चे को कंधे पर बैठाकर, द्वारीखाल किसी डॉक्टर के पास ले जा रही थी। उस बच्चे के पेट में बहुत दर्द था। मैने अपने बैग में से पेट दर्द की गोली व एक ors का घोल दिया। वह उसे लेकर आगे बढ़ गई। यह दृश्य देखकर मेरा मन भर आया। की यहां के लोगो को एक सडक ना होने से कितना कष्ट उठाना पडता है। और एक शहरी लोग है जो छोटी छोटी जरूरत पूरा ना होने पर आंदोलन कर देते है, ट्रेन रोक देते है, आगजनी कर के सड़क जाम कर देते है।

हम वहां से आगे बढ़ गए अब चीड का जंगल शुरू हो गया। चीड के पेड बहुत लम्बे लम्बे होते है और आग को भी जल्द पकड लेते है। इसलिए लगभग हर वर्ष गरमी में चीड के पेडो में आग लग जाती है और जंगल नष्ट हो जाते है। एक जगह दूर एक गांव दिख रहा था मैने उस गांव को पहचान लिया मैने रामानंद से कहा की यह बरसुडी है ना। रामानंद ने हामी भरते हुए कहा की जी यही बरसुडी है। अब कदम तेज पडने लगे, यह सुंदर रास्ते, कठीन होने के बाबजूद भी अच्छे लग रहे थे। मेरे साथ आया मित्र मुस्तफा यहां पर आकर बहुत खुश था। बरसुडी के सामने वाले पहाड पर बादल नीचे से ऊठ कर चारो और फैल रहे थे। यह नजारा बेहद खूबसूरत लग रहा था। तभी रामानन्द जी ने बताया की नीचे गदेहरा है, वहा से यह बादल ऊठ रहे है। गदेहरा क्या होता है मैने पूछा तो उन्होने बताया की उसमे पानी बहता रहता है और अब तो बहुत पानी है। तब मैं समझा की यह ताजे पानी के नाले को गदहेरा बोल रहे है। अब हम गांव के बाहरी प्रवेश द्वार पर पहुंच चुके थे। हमारा यह सात किलोमीटर का रास्ता कब खत्म हो गया पता ही नही चला।
रामानंद के साथ मैं सचिन त्यागी 

सुन्दर नजारे हर तरफ देखने को मिलते है।

बरसुडी गाँव कि तरफ जाते मुसाफ़िर

बरसुडी कि तरफ 

कुछ देर इसी पेड़ को देखता रहा। 

भलगांव को रास्ता इधर से अलग हो जाता है (जावेद त्यागी )

चीड के जंगल शुरू हो जाते है। 
दूर से दिखता बरसुडी गाँव 
ज़ूम करके देखने पर

वही जाना है 

सीढ़ीदार खेत लकिन बंजर है फ़िलहाल 

लो जी आ गये बरसुडी स्वागत के लिए बैनर लगा हुआ है। 

मुस्तफा जी बहुत खुश है , पहाड़ के उस पर बादलों को देखते हुए। 

गौ माता 


गांव में प्रवेश करते ही हमे बीनू दिख गया। बीनू ने हमारा रहने का इंतजाम अपने चाचा जी (श्री हरीश कुकरेती) जो की प्राथमिक विद्यालय के प्राधानाचार्य भी है उनके घर पर करा दिया। यह भी यहां पर अकेले रहते है बाकी फैमली कही और रहती है। हम लोगो ने कमरे में समान रखा और बीनू के घर की तरफ चल पडे। ऊंचे नीचे रास्ते से होते हुए बीनू के घर पहुंचे। बीनू का परिवार भी दिल्ली में ही रहता है यहां यह घर बंद ही रहता है। बीनू के घर पर ही सभी दोस्तो से मुलाकात हई। कल के प्रोग्राम पर बातचीत हुई। तभी गाजियाबाद के एक दोस्त गौरव चौधरी आ गए उनका रहने का बंदोबस्त भी हमारे कमरे में ही था। फिर हम सब पंचायत भवन पर पहुंचे । यही पर हलवाई लगे हुए थे जो हम सब के लिए खाना बनाएगे। हम लगभग 27 लोग आज बरसुडी पहुंच चुके थे और लगभग 15 लोग कल यहां आने वाले थे। सबसे पहले बारी-बारी परिचय हुआ और परिचय के बाद कल के लिए सबको काम सौंपा गया की किसको क्या जिम्मेदारी उठानी है। बैठक के बाद सबने खाना खाया और अपने अपने कमरो में चले गए। मै और दोनो मित्र कमरे के बाहर बनी बालकनी में बैठे तारो को देख रहे थे। गांव में अंधेरा होने व ऊंचाई होने के कारण यह तारे बहुत नजदीक दिख रहे थे। बाकी हमारे चकाचौंध शहरो में तो अब तारे दिखते ही नही। अब थकावट व नींद असर दिखाने लगी और हम सोने के लिए कमरे में चले गए...
यही डेरा डालना है तीन दिन के लिए (हरीश कुकरेती जी का घर )

रात्रि घुमक्कड़ सभा 

यात्रा जारी है। ...... 

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर विवरण है सचिन जी। शानदार तस्वीरें भी। तो आॅटोमेटिक गियर ट्रांसमिशन वावाली गागाड़ी का पहाडों में कैसा अनुभव रहा बताएगा जरूर।
    शशि नेगी

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    1. धन्यवाद शशि जी। अॉटोमेटिक गियर ट्रांसमिशन वाली मेरी गाडी बहुत उम्दा चली पहाडी रास्ते पर। बहुत मजा आया, बार बार गियर बदलना नही पडता काफी स्मूथ चलती है।

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  2. शानदार यात्रा......जल्दी ही बरसुडी हिल स्टेशन बनने वाला है.......��

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    1. धन्यवाद महेश जी, सच कह रहे है वैसे भी बहुत सुंदर जगह है बरसुडी ।

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  3. बहुत ही बढ़िया लीखा है आप लोगो के सहयोग से बहुत ही उम्दा काम हुआ

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  4. बहुत खूब.... चलो अब जाकर घुमक्कड़ों का कैम्प किसी ब्लॉग पर तो आया। ☺

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    1. जी सर आप का ब्लॉग पढा था। आपने बहुत सुंदर वर्णन किया है बरसुडी का

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  6. त्यागी जी विस्तार से लिखा शानदार लिखा

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  7. बरसुडी यात्रा की अच्छी शुरुआत। पढ़कर आनंद आ गया। मैं भी इस यात्रा पर लिख रहा हूँ।

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  8. बहुत अच्छा वर्णन किया है आपने उत्तराखण्ड के इस ग्राम की यात्रा का परन्तु ब्लॉग से यह नहीं पता लगा की आप सब 27 लोगों ने ग्राम में क्या कार्य किया? विस्तारपूर्वक अगले ब्लॉग में बतलाईयेगा

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    1. प्रवीन चंद्र जी वैसे मैने शुरूआत में ही लिखा था की मैं एजूकेशन कैम्प में शामिल होने के लिए आया था। वैसे आगे की पोस्ट में विस्तार से लिखा जाएगा। शुक्रिया आपका पोस्ट पर आने के लिए।

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  9. Hey sachin you have done great job. I am also traveller and travelogue writer. Vinaysakt.wordpress.com

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    1. धन्यवाद विनय। आपकी पोस्ट पढ़ी बहुत अच्छा लिखते है आप।

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  10. Faboulous story. I'll be ahppy to join you for such a wonderful journey. Let me know pls for any future journey like this

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  11. Shandar bhai... maza aaya padh k. crisp photographs too. agli baar bike pe yahin jaunga me bhi..

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    1. शुक्रिया सर,, बिल्कुल आप अपनी स्पोर्टस बाईक पर चलना अगली बार।

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  12. बहुत बढ़िया सचिन भाई ! मैं तो इस बार भी नहीं जा पाया लेकिन आपकी पोस्ट के माध्यम से बरसुडी को देखना बहुत अच्छा लगा !! पहाड़ी गाँव तो हमेशा ही खूबसूरत लगते हैं !! बढ़िया पोस्ट

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  13. बहुत ही बढ़िया और जबरदस्त पोस्ट

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  14. नेक काम की सुरुवात रास्ते मेही हो गई शानदार

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  15. Sachin Sab, I read your Barsudi pages.
    Very interesting and intertaining.
    Thanks.

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